लेकिन ऐसा तो जनवादी लोकतंत्र के बारे में भी सच है.
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लेकिन ऐसा तो जनवादी लोकतंत्र के बारे में भी सच है.
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लेकिन वे जनवादी लोकतंत्र तो नहीं ही ला सके, उलटे उन्होंने मौजूदा संसदीय प्रणाली की बुराइयों को बढ़-चढ़ कर अपना लिया।
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लोगों द्वारा सच्चे अर्थों में जनवादी लोकतंत्र स्थापित करने के प्रयासों को सरकार, मीडिया एवं सेना-पुलिस के द्वारा पूरे भारत में इसी तरह दबाया जा रहा है.
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लोगों द्वारा सच्चे अर्थों में जनवादी लोकतंत्र स्थापित करने के प्रयासों को सरकार, मीडिया एवं सेना-पुलिस के द्वारा पूरे भारत में इसी तरह दबाया जा रहा है.
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यहॉं तक कि 1917 में मार्क्सवादी सिद्धान्तों पर हुयी रूसी क्रान्ति तथा द्वितीय विश्व युद्ध के बाद पूर्वी यूरोप में बनी साम्यवादी सरकारों ने भी स्वयं को ' ' जनवादी लोकतंत्र '' कहा था।
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पूंजीवादी या जनवादी लोकतंत्र की बहस फिलहाल हम छोड़ भी दें तो वाल्ट व्हिटमैन, अब्राहम लिंकन, मार्टिन लूथर किंग ने जिस लोकतंत्र का झंडा उठाया था और साम्राज्यवाद या उपनिवेशवाद के चक्के तले पिसती राष् टीयताओं को जिससे जीवनी शक्ति मिली थी, वह लोकतंत्र आज उन्हीं की जमीन पर तार-तार हो रहा है।
8.
देश के तथाकथित जनवादी … जो सो रहे हैं … इतिहास से भी ज़्यादा पुरानी नींद में … उनको जगाने के बाद क्या हमेशा सिर्फ़ दो ही शब्द सुनते रहेंगे हम … ऐतेहासिक भूल और जनवादी लोकतंत्र … क्या लोक में शामिल होंगे वो कभी … और तंत्र को बदल पाएंगे भी … भगत सिंह तो तुम्हारे आदर्श थे … क्या समय तुम्हें न बदलने के लिए अभिशप्त कर चुका है …